फूल और काँटे

15-10-2023

फूल और काँटे

अशोक रंगा (अंक: 239, अक्टूबर द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

जीवन में
बहुत ख़ुशियाँ मिलीं
उसके लिए प्रभु! 
तेरा शुक्रिया 
 
कइयों ने बहुत 
सहयोग दिया
बहुत प्यार दिया
तो कइयों ने 
ग़म और ख़ुशी में
स्नेह अश्रु बहाते हुए 
गले लगाया 
 
कई इस दिल को भा गए
कई इस दिल में हमेशा के लिए
छा गए
 
मात पिता ने
सब कुछ 
न्योछावर किया 
उनसे
हर पल बे इंतेहा
ख़ुशियाँ मिली 
 
मगर 
जीवन में 
कइयों ने 
कई बार 
टाँग खींची
हम सँभलते रहे 
 
कइयों ने 
कई बार
दिल तोड़ा
हम सँभलते रहे 
 
कइयों को 
जिन्हें 
अपना समझा
वे पराए निकले
जिन्हें पराया समझा
वे अपने निकले 
 
मगर हम 
चोट खा कर
ख़ामोश रहे 
चलते रहे 
 
मौत ने भी
गिरेबान में 
हाथ डाला 
जबड़ा पकड़ा
उससे लड़े 
थोड़ा बहुत
घबराए
मगर अंत में
हिम्मत के साथ
उठ खड़े हुए 
 
और 
दुनियादारी 
निभाते हुए 
फिर से 
चल पड़े
 
ऐ पथिक
तुझे भी 
चलना होगा
आगे बढ़ना होगा
 
हिम्मत के साथ 
जोश के साथ 
होश के साथ 
प्रेम के साथ
ईश्वर के साथ 
 
अच्छा हो या बुरा
हँसी हो या आँसू
मिलन हो या इंतज़ार 
मान हो या अपमान 
सब साथ लिए
बस चलना होगा
 
यही जीवन है
यही जीवन है
 
हाँ शिद्दत से
जो चाहोगे
वह भी
क़ुदरत से 
मिलेगा 
ज़रूर 
मिलेगा 
उम्मीद रख 
और 
चलते चल
चलते चल 
यही जीवन है!

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