तलाश

अशोक रंगा (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

यूक्रेन की धरती पर एक अस्सी वर्षीय बुज़ुर्ग महिला बड़ी बेसब्री से कुछ तलाश कर रही थी। अचानक रूस के सैनिकों ने उस बुज़ुर्ग महिला को कड़क आवाज़ में पूछा कि ‘हेलो ओल्ड गर्ल’ क्या तलाश कर रही हो? 

उस बुज़ुर्ग महिला ने बताया कि मैं मेरे शहर में खेलते हुए मासूम बच्चों को, शहर की रौनक़ को, शहर के त्योहारों को और शहर के पालतू जानवरों की तलाश कर रही हूँ। यह सुनकर सैनिक ज़ोर से हँस पड़े और फिर उस बुज़ुर्ग महिला से कहने लगे कि चुपचाप अपने घर की तरफ़ लौट जाओ। क्या अब भी तुम्हें अपने घर से बाहर भटकते हुए पुतिन और उसकी सेना का डर नहीं लगता है? 

यह सुनकर बुज़ुर्ग महिला ने अपनी छाती ठोकते हुए कहा, “अब मेरे परिवार में कोई भी नहीं बचा है। मेरे शहर में भी विरानी छा गई है। अब मुझे किसका और किस बात का भय? सैनिको! तुम अब यहाँ से चले जाओ और अपने पुतिन को बोलना कि अब एक बुज़ुर्ग महिला तुमसे और तुम्हारे सैनिकों से क़तई भी नहीं डरती है। क्योंकि उसके पास अब खोने को बचा ही क्या है?”

वह बुज़ुर्ग महिला उन सैनिकों की तरफ़ आँखें निकालते हुए और उनकी उपेक्षा करते हुए आगे बढ़ते हुए पुनः अपनी तलाश में जुट गई। 

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