पृथ्वी भाग-ए पृथ्वी भाग-बी

15-12-2021

पृथ्वी भाग-ए पृथ्वी भाग-बी

अशोक रंगा (अंक: 195, दिसंबर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

शनिवार की शाम थी। दूसरे दिन छुट्टी थी, इस कारण सवेरे जल्दी उठने की कोई टेंशन नहीं थी। बस फिर क्या था, शिव मंदिर में साथियों के साथ बैठकर दही की लस्सी घोटी और गटक ली। जम कर भोजन किया और चादर तान कर सो गए। 

धीरे-धीरे ऐसा लगने लगा मानो भूकम्प आया हो। रेडियो उठाया और पेड़ के नीचे जाकर बैठ गए। जैसे ही रेडियो चालू किया, आवाज़ आई—यह आकाशवाणी का बीकानेर केन्द्र है। अब आप सुनिए एक विशेष समाचार। अभी-अभी समाचार मिला है कि भूमध्य रेखा पर स्थित सभी देशों ने गोपनीयता के साथ परमाणु बमों का परीक्षण किया है। दुर्भाग्य से सभी देशों के परीक्षण का एक ही समय निर्धारित हो गया था और प्रचंड धमाकों के कारण पृथ्वी दो हिस्सों में बँट रही है। भूमध्य रेखा पर स्थित सभी शहर, गाँव गहरी खाई में समा रहे हैं और विश्व में चारों ओर अफ़रा-तफ़री सी मच गई है। अगला विशेष समाचार कुछ ही देर बाद संपर्क बना रहा तो पुनः प्रसारित किया जाएगा तब तक भजन सुनिए। 
यह सुनकर शरीर पानी-पानी हो गया। जेब में से खैनी निकाली, चूना मिलाया और टेंशन को कुछ कम करने का प्रयास किया। मन में ईश्वर का नाम चल रहा था। अभी कुछ सँभला ही नहीं था कि कानों में फिर समाचार गूँजने लगा। एक विशेष सूचना—अभी-अभी जानकारी मिली है कि पृथ्वी दो हिस्सों में बँट गई है और दोनों हिस्सों में दूरी बढ़ती जा रही है। एक हिस्से का नाम पृथ्वी-ए तथा दूसरे का नाम पृथ्वी-बी रख दिया गया है। हम पृथ्वी-बी से बोल रहे हैं। 

यह सुनकर मन विचारों के भँवरजाल में डूब गया कि पृथ्वी दो भागों में बँट गई है। अब पृथ्वी के दोनों भागों के लोग एक-दूसरे से कभी मिल पाएँगे या नहीं व क्या कहीं भौगोलिक दूरी के साथ इनके दिलों की दूरियाँ भी बढ़ती जाएँगी? कहीं इनके बीच रिश्ते भारत-पाकिस्तान, उत्तरी और दक्षिणी कोरिया की तरह तो नहीं हो जाएँगे। 

इसी दौरान श्रीमती जी की बुलंद आवाज़ कानों तक गूँजने लगी कि रविवार है, तो इसका मतलब यह नहीं कि देर तक सोए रहोगे? दो बार चाय ठंडी हो चुकी है। मैंने चौंक कर आँखें खोलीं। मन में सुकून आया कि जो कुछ चल रहा था, वह मात्र एक सपना था, लेकिन मन का भारीपन कम नहीं हुआ। फिर दोनों हाथ जोड़कर ईश्वर से प्रार्थना करने लगे कि हे प्रभु! सभी देशों को सद्बुद्धि देना, क्योंकि सभी देश अणु-परमाणु बम आलू-प्याज़ की तरह लिए बैठे हैं। हमारी प्यारी पृथ्वी को अणु-परमाणु बम के निर्माण, परीक्षण और प्रयोग जैसे विनाशकारी क़दमों से बचाए रखते हुए सम्पूर्ण धरती व मानवता को बचाए रखना। धीरे-धीरे समय तो गुज़रता गया, लेकिन वह सपना, अब भी दिल और दिमाग़ से विश्व में बढ़ती हथियारों की होड़, हथियारों के व्यापार व श्रेष्ठता के भावों को देखते हुए, निकलना तो दूर गहराता जा रहा है। अब बार-बार ईश्वर से यही प्रार्थना करने लगे हैं कि हे ईश्वर! यह सपना कभी भी सच ना हो और सभी को सद्बुद्धि मिले। 

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