याद किसी की आए न

01-10-2025

याद किसी की आए न

अश्वनी कुमार 'जतन’ (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

व्यस्त रहूँ मैं ख़ुद में इतना, कोई ग़म आ के तड़पाए न
बिस्तर पर बस नींद ही आए, याद किसी की आए न
 
दुनिया भर के बड़े तजुर्बे, उमर में अपनी कर बैठा हूँ
किसी को सुलझा हुआ मैं लगता, किसी की ख़ातिर मैं ऐंठा हूँ
मैंने मंज़र सब देखें हैं, कोई दिल मेरा बहलाए न
बिस्तर पर बस नींद ही आए, याद किसी की आए न
 
सब कुछ है जीवन में मेरे, हाथ में एक नहीं रेखा है
तुमने इश्क़ के पढ़े हैं क़िस्से, हमने तो करके देखा है
ख़ुश्बू से कर ली है दूरी, कोई इत्र मुझे महकाए न
बिस्तर पर बस नींद ही आए, याद किसी की आए न
 
राह पता है मुझको सारी, एक मैं ही रस्ता बतलाऊँगा
मेले में सब खो जाएँगे, “जतन” मैं वापस आ जाऊँगा
इश्क़ का शोला बुझा हुआ है, कोई आ के इसे भड़काए न
बिस्तर पर बस नींद ही आए, याद किसी की आए न

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