ख़ुद्दारी

15-11-2021

ख़ुद्दारी

अश्वनी कुमार 'जतन’ (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

वारदात होगी ये हम भाँप आये हैं,
ये बाल हमने थोड़ी हवा में गँवाए हैं,
 
चाँदी के सिक्कों से ख़ुद्दारी ख़रीदोगे, 
हम ख़ज़ाने मुफ़लिसों में बाँट आये हैं,
 
काफ़िर भी कर रहे थे ईमान की बातें,
कल शाम को ही हम उन्हें डाँट आये हैं,
 
हमसे कभी भी भूल से बचपन न छीनना,
इस उम्र में भी घूमने हम हाट आये हैं,
 
जिसने हमारे साथ में उम्रें गुज़ार दीं,
अफ़सोस वो भी तलवे कहीं चाट आये हैं,
 
दिल से ’जतन’ मिलोगे तो दिल में बिठाएँगे,
कर कितने दानिशों की खड़ी खाट आये हैं।    

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें