सपने अगर सुनहरे होंगे
अश्वनी कुमार 'जतन’
सपने अगर सुनहरे होंगे
मुमकिन है सौ पहरे होंगे
यार मेरे जो हुए लापता
रात तेरे घर ठहरे होंगे
ज़ख़्म मुझे जो मिले हैं तुमसे
ज़ाहिर है वो गहरे होंगे
अगर दर्द पे मुंसिफ़ चुप है
पता करो वो बहरे होंगे
तुमसे तन्हा मिलना होगा
महफ़िल में सब घेरे होंगे
अस्तीनों में साँप छुपे हैं
बाहर ‘जतन’ सँपेरे होंगे