टूट जाने तलक गिरा मुझको
हस्तीमल ‘हस्ती’टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको
मेरी ख़ुशबू भी मर न जाये कहीं
मेरी जड़ से न कर जुदा मुझको
घर मेरे हाथ बाँध देता है
वरना मैदां में देखना मुझको
अक़्ल कोई सज़ा है या इनआम
बारहा सोचना पड़ा मुझको
हुस्न क्या चंद रोज़ साथ रहा
आदतें अपनी दे गया मुझको
देख भगवे लिबास का जादू
सब समझतें हैं पारसा मुझको
कोई मेरा मरज़ तो पहचाने
दर्द क्या और क्या दवा मुझको
मेरी ताकत न जिस जगह पहुँची
उस जगह प्यार ले गया मुझको
ज़िंदगी से नहीं निभा पाया
बस यही एक ग़म रहा मुझको
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- ग़ज़ल
-
- ग़म नहीं हो तो ज़िंदगी भी क्या
- चाहे जिससे भी वास्ता रखना
- चिराग हो के न हो दिल जला के रखते हैं
- टूट जाने तलक गिरा मुझको
- तुम क्या आना जाना भूले
- प्यार में उनसे करूँ शिकायत, ये कैसे हो सकता है
- फूल पत्थर में खिला देता है
- मुहब्बत का ही इक मोहरा नहीं था
- रास्ता किस जगह नहीं होता
- सबकी सुनना, अपनी करना
- साया बनकर साथ चलेंगे
- सिर्फ ख़यालों में न रहा कर
- हँसती गाती तबीयत रखिये
- हम ले के अपना माल जो मेले में आ गए
- हर कोई कह रहा है दीवाना मुझे
- विडियो
-
- ऑडियो
-