सोन चिरैया
डॉ. नितीन उपाध्येतू अपनी सोन चिरैया को, बाबा उड़ने को पर देना
वो माँगेगी जो चाँद कभी, तो नाम पे उसके कर देना
नाज़ुक है तो कमज़ोर भी है, ये कैसे दूर भरम होगा
उड़ान भरेगी जब बेटी, यह आसमान भी कम होगा
ना सोना दे, ना चाँदी दे, देना उसको तो हुनर देना
तू अपनी सोन चिरैया को बाबा उड़ने को पर देना
पढ़ने दे, आगे बढ़ने दे, कर देगी दुनिया ये नाम तेरे
तेरी सात पुश्तें तर जायेंगी, आई है गंगा धाम तेरे
हो कला क्षेत्र या क्रीड़ांगन, विजयी-भव ये वर देना
तू अपनी सोन चिरैया को बाबा उड़ने को पर देना
थोड़े से नियम, थोड़ी सी शरम, बेटे को भी सीखा देना
वह जानवर ना बन जाये, इंसान उसे भी बना देना
उससे भी घर की इज़्ज़त हैं, ये सोच तू मन में भर देना
तू अपनी सोन चिरैया को बाबा उड़ने को पर देना
इक दिन अपने घर जायेगी, सदियों से तो है रीत यही
पर क्या वो ख़ुश रह पायेगी पूछे हैं प्रश्न, अतीत यही
हँसकर दिल से जो अपनाये, उसको ऐसा ही घर देना
तू अपनी सोन चिरैया को बाबा उड़ने को पर देना