पावनखिंड

01-02-2023

पावनखिंड

डॉ. नितीन उपाध्ये (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

जादू नहीं, परियाँ नहीं, राजा न रानी है
माटी में मिल गये हैं जो उनकी कहानी है
उनके लहू से लिखी हैं, मेरी ज़ुबानी है
माटी में मिल गये हैं जो उनकी कहानी है
इक अनकही सी दास्तां तुमको सुनानी है
माटी में मिल गये हैं जो उनकी कहानी है
 
इक सिंह को कुछ भेड़िये जब घेरे बैठे थे
अब तो फँसा शिवाजी, सोच सोच ऐंठे थे
रसद पन्हाळागढ़ पे धीरे धीरे कम हुई
निकाली गनिमी कावा की युक्तियाँ नई
शत्रु को छकाने के लिये ऐसी चली चाल
राजे ने लिया फ़ैसला, जायेंगे गढ़ विशाल
दुर्गम थी राह और घनी सियाह काली रात
कुछ गिने चुने मावळों को ले के अपने साथ
 
उन मर्द मराठों की हवाओं से शर्त थी
बिजली नसों मेंं घुल रही पर्त दर पर्त थी
सिद्दी को जब पता चला घुटनों पे गिर पड़ा
लेके हज़ारों सैनिकों को पीछे वो बढ़ा
टिड्डी के जैसे दुश्मनों की फ़ौज सर पे थी
अँधेरे की बुरी नज़र उजालों के घर पे थी
सरदार शिवाजी के, बाजी प्रभु ने ये कहा
स्वराज्य ना रहेगा अगर राजा ना रहा
 
जाओ शिवाजी तुमको भवानी की आन हैं
न घुस सकेगी चींटी जब तक तन मेंं प्राण है
सँकरी थी राह घोडखिंड की, बाजी डट गये
दोनों हाथों में तलवार, जाने कितने कट गये
उतरे थे काल भैरव या था रूद्र का तांडव
निस्तब्ध थी प्रकृति देख रूप वो रौरव
बाजी प्रभु का सीना बना लोहे की दीवार
शत्रु भी भेद करके जिसे जा सका न पार
 
रणचंडी के लिये रचाया हवन कुंड था
कट कट के गिरा जिसमें भेड़ियों का झुंड था
एक एक मराठे ने बीस बीस मार कर
प्राणों की आहुति से भरा काली का खप्पर
थी देह लहू-लुहान, मगर आँखें जल रहीं
सुनने को गरज तोप की, थी साँसें चल रहीं
ऐ मौत तू न आ, पहुँच की आई न ख़बर
महाकाल भी खड़े थे वहाँ हाथ बाँधकर
 
सुनी जो गरज तोप की, फिर त्याग दिया तन
बाजी प्रभु की वीरता से हुई घाटी वो पावन
घोडखिंड को दिया था पावनखिंड नया नाम
बाजी प्रभु, शिवाजी को शत शत मेंरा प्रणाम
तन मावळा, मन मावळा, मेरी माता भवानी है
माटी में मिल गये हैं जो उनकी कहानी है
इक अनकही सी दास्तां तुमको सुनानी है
माटी में मिल गये हैं जो उनकी कहानी है
 
गनिमी कावा=छापामार युद्ध

1 टिप्पणियाँ

  • 20 Jan, 2023 02:01 PM

    Nicely worded

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