सिक्का

ख़ुदेजा ख़ान (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

मुद्राएँ चलन से बाहर होकर 
मुहावरों में ढल गईं 
 
अपने वादे से मुकर गए 
‘पाई-पाई चुकाने’ की 
क़सम खाने वाले 
 
सुनार ने ‘रत्ती भर खोट’ नहीं कहकर अपना सोना बेच दिया 
और ख़रीदा ज़्यादा बट्टा काटकर 
 
आख़िर रसूख़दार ने दिखा दी 
मौक़े पर अपनी ‘कौड़ी की औक़ात’
 
सोलह आना सच बोलने वाले 
ख़त्म क्यों होते जा रहे हैं दुनिया से
 
सवाल जितना बड़ा है 
‘टका सा जवाब’ ही मिला 
हर जगह से 
 
सिक्कों का सिक्का चलता है बोलचाल की भाषा में। 

1 टिप्पणियाँ

  • वाह! सिक्कों का सिक्का चलता है लेकिन मुहावरे बन कर भी सिक्का तो चलता ही रहता है इसी बहाने लोगों को इतिहास का भी तो पता चलता है

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