शब्दोत्सव
समीर उपाध्यायशब्द
ईश्वर का रूप है।
मुँह से निकलने वाला हर एक शब्द
ब्रह्म स्वरूप है।
इसलिए सम्मान करें हर एक शब्द का।
शब्द के हाथ पाँव नहीं है,
फिर भी मुँह से निकले कड़वे शब्द
कभी किसी के लिए
ज़िन्दगी भर ना भरने वाला ज़ख़्म बन जाता है
और मुँह से निकले मीठे शब्द
कभी किसी के लिए
जीने की वजह भी।
इसलिए शब्द के स्वर को
सुधारने का यत्न करें।
यथा समय
यथा योग्य
शब्दों का प्रयोग कर
इस जीवन को 'शब्दोत्सव' बनाएँ।
बस, हो गई साधना संपन्न।