शब्द जब शत्रु बन जाए

15-01-2022

शब्द जब शत्रु बन जाए

समीर उपाध्याय (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द काम में अंध बन जाए 
चरित्र पर कलंक का टीका लग जाए।  
 
शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द क्रोध की ज्वाला बन जाए 
सब कुछ जलाकर ख़ाक कर जाए।  
 
शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द मोह की कंदरा में फँस जाए 
बाहर निकलने का रास्ता ना मिल पाए।  
 
शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द माया की नगरी में भटक जाए 
चक्रव्यूह से कभी बाहर ना निकल पाए।  
 
शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द माया की मदिरा का पान कर जाए 
शान-भान सब कुछ भूल जाए।  
 
शब्द जब शत्रु बन जाए 
शब्द सँभले सँभल ना पाए।  
शब्द ईर्ष्या का अँगारा बन जाए 
जीवन-पथ अग्नि-पथ में बदल जाए।  

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