शब्द का यह तिलिस्म है कैसा!

15-01-2022

शब्द का यह तिलिस्म है कैसा!

समीर उपाध्याय (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

शब्द का यह तिलिस्म है कैसा! 
कोई ना ताकतवर इसके जैसा।  
शब्द
कभी वसंत बन जाए
चारों ओर गुलशन खिल जाए।  
शब्द 
कभी बरखा बन जाए 
खेतों में हरियाली लाए।  
शब्द
कभी बाद-ए-बहार बन जाए
मन को प्रफुल्लित कर जाए।  
शब्द 
कभी नफ़ीरी बन जाए
सात सुरों का संगम सुनाएँ।  
शब्द 
कभी अमृत बन जाए
रूह की ख़ूबसूरती बन जाए।  
शब्द 
कभी इबादत बन जाए
ख़ुदा की इनायत हो जाए। 

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