संस्कृति

01-07-2023

संस्कृति

नीना सिन्हा (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

“एक अविश्वसनीय सी ख़बर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, सुशांत। ख़बर सत्य है, अर्धसत्य या इनके मध्य कहीं, कौन जाने?” 

“दुनिया एक वैश्विक गाँव बनकर रह गई है, मुग्धा! झूठा-सच्चा कलेवर पहन, ख़बरें दुनिया का चक्कर काटने लगती हैं। ख़बर क्या है?” 

“भीलवाड़ा, राजस्थान में एक युवती ने भागकर अपने पसंद के लड़के से शादी कर ली तो उसके परिवारजन जीते जी उसका मृत्यु भोज करने वाले हैं। ख़बर के साथ शोक संदेश का स्क्रीनशॉट भी है!” 

“उधर, जात बाहर ब्याह अमूमन नहीं होते। गर लड़की मर्ज़ी के विरुद्ध, ब्याह कर ले तो उस पर ‘कुल बैरन’ का ठप्पा लग जाता है। पंच-पटेलों की मिली-भगत से झूठे मृत्यु-भोज के प्रपंच रचे जाते हैं। ऐसी औलाद को ‘नालायक’ और स्वयं को ‘बेचारा’ प्रदर्शित करता परिवार समाज में अपनी नाक बचाने की जुगत में रहता है। उस पोस्ट को ही ठीक से देखो, ऐसे बहुतेरे मिलेंगे, जो बिना सोचे-विचारे, मृत्यु भोज को सही ठहराएँगे। सभ्यता-संस्कृति की दुहाई देंगे, पलक झपकते ही विस्मृत कर देंगे।” 

“तुम्हारा अनुमान सच है। इक्कीसवीं सदी में मानसिकता वही प्राचीन! ऐसी सज़ा सिर्फ़ लड़कियों को दी जाती है या लड़कों को भी . . .?” 

“सज़ा के मामले में, लड़कों के प्रति रवैया नर्म होता है। लिंग भेद के मामले में वह राज्य . . . ख़ैर। अन्य राज्यों के दूरदराज़ शिक्षा के अल्प प्रचार-प्रसार वाले क्षेत्रों में, समानांतर घटनाएँ नहीं घटती होगी, हम विश्वास के साथ नहीं कह सकते। संतति के लिए त्याग की गाथाओं से भरा इतिहास, औलादों के लिए जीवनसाथी चुनने का अधिकार देता तो है; पर अच्छा होता कि माँ-बाप अपनी हठ में थोड़ी ढील देते, स्वयं को बदलते तो कोई क्यों भागता?” 

“क्या इतने बड़े परिवर्तन की उम्मीद रख सकते हैं?” 

“कोई टिप्पणी नहीं करूँगा, मुग्धा!”

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