बोध

नीना सिन्हा (अंक: 186, अगस्त प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

“नमस्ते अंकल जी! आंटी जी को ढूँढ़ती हुई हमारी अम्माँ इधर ही आ रही है," पहाड़ी स्थान पर घूमने आये दंपती जिस ढाबा जैसे रेस्टोरेंट में रुके थे, उसके बच्चों एवं बाल मित्रों ने पीछे से धमककर अनिकेत और रमा को कोरस में संबोधित किया। व्हीलचेयर के साथ कोल्ड ड्रिंक में मिली नींद की गोली के असर से उनींदी सी रमा को खाई में ढकेलते अनिकेत के हाथ थरथरा कर एकबारगी रुक से गये।

“हे भगवान! ये शैतान कहाँ से आ टपके? जिस काम के लिए आया था, उसी में ख़लल पड़ गया।”

क्रोध पर हँसी का मुलम्मा चढ़ाते हुए अनिकेत ने पूछा, “बच्चो! आंटी को क्यों ढूँढ रहे हो?”

“अंकल! आंटी ने अम्माँ से कहा था कि विभिन्न चाय बागानों की अलग-अलग स्वाद और ख़ुशबू वाली ढेर सारी चाय पत्ती ख़रीद कर अपने साथ ले जाएँगी, क्योंकि आपको चाय बहुत पसंद है।”

तब तक ढाबे वाली भी आ पहुँची, “यहाँ क्या कर रहे हैं साहब? सामने कितनी गहरी खाई है। मैडम सोई-सोई सी लग रही हैं, उनकी कुर्सी खिसककर उधर न चली जाये। यहाँ खड़े रहना ख़तरनाक है। मेरे साथ चलिये, साहब!”

चिढ़ा हुआ अनिकेत ढाबे वाली और बच्चों के साथ रमा की व्हीलचेयर ढकेलता हुआ चल पड़ा। रमा अभी भी अर्द्धनिद्रा में थी।

चलते-चलते ढाबे वाली बड़े भावुक स्वर में बोल पड़ी, “मैडम ने बताया था कि कुछ साल पूर्व बाँस की सीढ़ी पर चढ़ने के दौरान असंतुलित होकर ऊँचाई से गिर पड़ी थीं। रीढ़ पर अत्यधिक चोट आने से व्हीलचेयर से जा लगीं, पर उनके पति उन्हें ढोये जा रहे हैं। आप देवता स्वरूप हैं, साहब!”

बातों-बातों में ढाबा आ गया।

“साहब! आप स्पेशल पकौड़े और चाय लीजिए। मैडम को भी जगाइए। इनके लिए यहाँ की चाय की सारी स्पेशल वैराइटी मँगवाई है। बारी-बारी से चाय बना कर इन्हें टेस्ट करा दूँगी।”

पत्नी का स्नेह और श्रद्धा देखकर उसका कलुषित मन शर्मिंदा हो चुका था। उनकी फ़ैशनेबल एवं आकर्षक व्यक्तिगत सहायिका के सानिध्य का आकर्षण उनसे बहुत बड़ा गुनाह करवाने जा रहा था, जिसकी कोई माफ़ी नहीं होती।

ख़ुद सेवा नहीं करना चाहता तो आर्थिक रूप से संपन्न है, सहायक रख सकता है। रमा भी उसे उसकी सहज ज़िंदगी जीने से कहाँ रोकती है, कभी राह का रोड़ा नहीं बनती बेचारी। चेहरे पर पानी के छींटे मार रमा को जगाने की कोशिश करने लगा।

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