रामचरण हर्षाना का कहानी संग्रह ‘झूठ बोले कौआ काटे’ उम्मीद जगाता है
सुरेन्द्र अग्निहोत्रीसमीक्षित पुस्तक: झूठ बोले कौआ काटे
लेखक: रामचरण हर्षाना
प्रकाशक: शतरंग प्रकाशन, एस-43 विकास दीप, स्टेशन रोड, लखनऊ-226001
मूल्य: ₹250
पृष्ठ:102
रामचरण हर्षाना अहिन्दी भाषी होते हुए भी हिन्दी में लिखी अपनी बहुत ही महत्त्वपूर्ण कहानियों का संग्रह के रूप में संकलित कर ‘झूठ बोले कौआ काटे’ शीर्षक से प्रस्तुत किया है। झूठ बोले कौआ काटे कहानी संग्रह की कहानियों के शिल्प और भाषा की मधुरता और आध्यात्मिक ज्ञान से विभूषित तत्त्व और व्यंग्यात्मकता की अनुभूति होती है। इस संग्रह में झूठ बोले कौआ काटे, महामारी के मारे, नहले पे दहला, क़िस्सा लव जिहाद का, जब चिड़िया चुग गई खेत, कसौटी, बोझ, एक पेंशनर की मृत्यु, सारी पापा, ईश्वर, चलो दिल्ली, दस्तक, दूध की थैली, रिश्वत, मनोचिकित्सक, टिकरवन सोलह कहानियाँ संकलित है। ‘झूठ बोले कौआ काटे’ कहानी का कथ्य अत्यंत नया है संग्रह की पहली कहानी झूठ बोले कौआ काटे में प्रेम नेगी और रितू के मकान किराये पर लेने के लिए ऊपर से पति पत्नी बनने के नाटकीय प्रसंगों से लेकर, दफ़्तर में सहकर्मी ओम तिवारी को रितू को नक़ली बीबी बनकर रहने की जानकारी के बाद, मकान मालिक के साथ मिलकर मज़ा लेने की साज़िश और उसका पटाक्षेप रितू का वास्तव में बीबी बन जाने के प्रसंग के बिंब असुरक्षा और पराजयों के बीच महानगरीय प्रेम की जटिल परतों को अनावृत करती हुई एक रोचक कहानी है। नायक प्रेम क़स्बाई भावुकता से भरा-भरा है। जबकि नायिका रितू इस सबसे मुक्त पढ़ी-लिखी आधुनिक है। कहानी का अप्रत्याशित अंत पाठक को चौंकाता है।
संग्रह की दूसरी कहानी महामारी के मारे एक सशक्त और रोचक कहानी है। यूँ तो यह कहानी महामारी के मारे लॉकडाउन और परिवार के घर में क़ैद रहने के बीच उम्रदराज़ लोगों के कोरोना ग्रस्त होने की दहशत पर है। इस काल खंड को लेखक ने बहुत ही प्रभावी ढंग से रेखांकित किया है। लेखक ने कथानक को विस्तार देने के लिए अनेक विधियों का सहारा लिया है। कहानियों में फ़्लैश बैक तकनीक का प्रयोग किया गया है।
संग्रह की अन्य कहानियाँ जब चिड़िया चुग कई खेत, कसोटी, बोझ, एक पेंशनर की मृत्यु, सॉरी पापा, ईश्वर, चलो दिल्ली, दस्तक दूध की थैली, मनोचिकित्सक, टिकरवन अपनी पाठनीयता के संकट को चुनौतियाँ देती हुई पाठकों को पढ़ने के लिए आकर्षित करती हैं। समय, समाज और संवेदनाओं केन्द्र में लिखी गयी अत्यन्त मोहक कहानियाँ हैं जो मन की गहराइयों में सरक जाती हैं। रामचरण हर्षाना ने देशकाल की परिस्थितियों को अपने जीवनानुभव की परिधि में समेटते हुए अभिव्यक्त किया है। संग्रह की ज़्यादातर कहानियाँ अच्छी हैं। चरित्र चित्रण की दृष्टि से यह कहानी-संग्रह पाठक को सोचने के लिए विवश करता है। ईश्वर भी बस तुम्हें जो उम्मीद जगाता है कि रामचरण हर्षाना की क़लम से भविष्य में बेहतर कहानियाँ पढ़ने को मिल सकती हैं। हिन्दी समाज इस संग्रह का स्वागत करेगा।
—सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
विधान सभा मार्ग; लखनऊ
मो: 9415508695,
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