प्यासा कौवा
धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’एक कौवा था बड़ा प्यासा,
उड़कर दूर देश से आया।
आकाश में सूरज इतराता,
गर्मी से था वो बलखाया।
तब उसने देखा एक घड़ा,
जो ज़मीन पर था पड़ा।
उसमें पानी बहुत था कम,
देखकर आँखें हो गई नम।
कैसे अपनी प्यास बुझाऊँ,
गर्मी से अपनी जान बचाऊँ।
बेचैनी से देखा इधर-उधर,
पड़े थे कंकड़ ज़मीन पर।
तब आया उसे एक विचार,
झट उठाया कंकड़ दो-चार।
डाले उसने ढेरों कंकड़,
बैठा फिर घड़े को पकड़।
धीरे-धीरे पानी ऊपर आया,
पानी पीकर वो चिल्लाया।
प्रयास कभी न खाली जाता,
लगातार मेहनत से फल पाता।