आओ चाँद से बातें करें
धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’आओ चलें, चाँद को निहारें
और बातें करें उससे
वो कुछ कहता है तुमसे
तुमने सुना है कभी?
सुनो, तुम ध्यान से
वो कुछ कहता है
कुछ दिखाता है तुम्हें
लेकिन तुम्हारी आँखें
तुम्हारा मन कहीं और है।
चाँद तुम्हें अच्छा लगता था
वो आज भी अच्छा लगता है
पर बदल गये हैं शायद
तुम्हारे देखने के नज़रिये
तुम कुछ कहना चाहते हो
लेकिन कह नहीं पाते हो
उसके लिए शायद कोई शब्द।
चाँद की रात में
उसकी शीतल चाँदनी में
बैठकर तुमने सुनी होगी
कितनी ही कहानियाँ
बुने होंगे कितने ही सपने
क्या तुम्हें याद है?
या भूल गये हो
ज़माने की भूल-भुलैया में।
रात की काली स्याही में
जब तुम घबराकर
इधर-उधर देखते हो
डरकर काँप उठते हो
वो तुम्हारे साथ रहता है
तुम्हारे संग-संग चलता है
तुम्हें मंज़िल तक ले जाता है।
इठलाते समुंदर की लहरों में
खिलखिलाते, हँसते
चाँद को देखा है कभी?
रात के आँगन में
रेत में लेटकर
चाँद को निहारा है कभी?
देखोगे, तो पाओगे उसे
अपने आस-पास कहीं
साथ-साथ चलते हुए।
आओ चलें, चाँद को निहारें
और बातें करें उससे।
4 टिप्पणियाँ
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1 Aug, 2019 07:34 AM
BAHUT KHUB PANKTIYA LIKHA HAI APNE
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19 Jun, 2019 12:43 PM
Nice Line
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19 Jun, 2019 08:01 AM
pasand aaya, aur likhen
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15 Jun, 2019 07:16 AM
nice lines very intresting