प्रेरणा गीत
प्रीति चौधरी ‘मनोरमा’आल्हा/वीर छंद
बाधाओं से डर कर हे मन, तन को ढो मत जैसे भार॥
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते सदा सफलता द्वार॥
श्रम की चाबी कर में रखकर, आज सरल हर कर ले राह।
ईश्वर देंगे मनचाहा वर, कर ले मन में ऐसी चाह॥
सुख-दुःख जीवन के दो पहलू, बात यही तू अब स्वीकार।
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते यहाँ सफलता द्वार॥
तूफ़ानों में डरना कैसा, नाव चला तू बनकर वीर।
रोके चाहे राहें कोई, तोड़ सदा दुख की प्राचीर॥
पाषाणों से टकराकर भी, बहती कल-कल नदिया धार॥
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते सदा सफलता द्वार॥
वीर कहाँ रण में झुकते हैं, करते दुश्मन का प्रतिकार।
रुकते कब हैं बढ़ते वे पग, हर बाधा कर जाते पार॥
जीवन ज्वाला में तपकर ही, करती देह सदा शृंगार॥
कंटक राहों से बढ़कर ही, खुलते यहाँ सफलता द्वार॥