प्रेम गीत
कृष्ण कांत शुक्ला(हाइकु)
संग बटोही
मिलकर गाने दो
प्रेम के गीत
नवीन पथ
नव बटोही रच
नवीन रीति
विस्तार कर
दरबदर पर
सबसे प्रीत
बटोही बना
कभी किसी का रहा
मन का मीत
गीत बुनता
बैठा पथ किनारे
थक बटोही
गाता सुनाता
अनुराग महिमा
थक बटोही
जागृत कर
छोड़ निकलने को
घृणा की सृष्टि
सब साथ हो
जड़ चेतन प्रति
समान दृष्टि
कहते हुए
भीग जाती पलक
अश्रु की वृष्टि
रोकती मीत
पाता कहाँ बटोही
मन को जीत
संग बटोही
मिलकर गाने दो
प्रेम के गीत