अगर वो रास्तों पर चला करते
कृष्ण कांत शुक्लामिलते हम भी उनसे मुसाफ़िर बन कर
अगर वो रास्तों पर चला करते
वो मुस्कुराते, हम शरमाते
उनकी इन्हीं अदाओं पर हम मरा करते
चुपचाप चलते हाथों में हाथ डाले
या कहानी कुछ लाजबाव कहा करते
हमारे मिलन में शामिल हो पंछी गाते
और झाड़ियों से फूल झरा करते
गर होती गुफ़्तुगू राह के भिखारी से
बात कैसी वो करा करते?
फैलती बाँहें आशीष में जब
दो चार अन्नी हाथों में धरा करते
ऐसी ही मुलाक़ातों से
बेरंग ज़िन्दगी में रंग भरा करते
मिलते हम भी उनसे मुसाफ़िर बन कर
अगर वो रास्तों पर चला करते