झूठे वादे
कृष्ण कांत शुक्लाझूठ तेरी अनगढ़ बातें, झूठी तेरी कहानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
जीवन भर का साथ जहाँ, बिकता औने-पौने।
वहीं विकल रोते मिलते हैं, नित अनाथ हो छौनें॥
फिर भी सोया है ज़मीर क्यों, होती है हैरानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
प्यार में डूबे प्यारे को, प्यारा है जग सारा।
सत्य प्रेम की सरिता का जल, होता है कब खारा॥
प्रीति सलिल की निरसता से, तड़पे मछली रानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
प्रीति है जग की हरियाली, इस बिन है जग सूखा।
प्रीति में ही सार मनुज का, है इस बिन मन रूखा॥
इन सब जड़ और चेतन में, कौन प्रीति का सानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
प्रेम बिन जीवन मरुस्थल, तथ्य सभी यह जानें।
प्रेममय है जिसका कण कण, मोल वही पहचानें॥
झूठ प्रीति में डूब प्रेमी, कर रहा कारिस्तानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
जाग-जाग रे प्रेमी मानव, देख कटारे घोंपे।
प्रेम बाग़ की क्यारी में, काँटे किसने रोपे॥
वादों का प्रेम पाश बाँध, किसने की मनमानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥
संरक्षित कर प्रीति को प्यारे, उगेगा फिर नव दिनकर।
फिर कोई लैला आएगी, सच्चे सलिल को पीकर॥
तब ना तो वादे टूटेंगे, होगी आना-कानी।
झूठ हो गए वादे सारे, सूखा मन का पानी॥