पाउडर 

डॉ. सुरभि दत्त  (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

दीपावली का पर्व। सड़कों-दुकानों हर जगह भीड़। इसी को ध्यान में रख कर मोहित ने स्कूटर ही निकाला था। जगमगाती, आकर्षक सामानों से सजी दुकानें। मनु उनकी ओर खिंची चली गईं। रंग-बिरंगे वंदनवार, दीप पंक्तियाँ, बताशे, घरौंदे के लिए खिलौने, भंडोली, गैंदे के मूरे क्या कुछ नहीं ख़रीद लिया मनु ने। 

एक हाथ में फूलों से भरा बैग थामे; हवा के झोंको में बिखरते बालों को दूसरे हाथ से सँभालते हुए सोचने लगी और कुछ बाक़ी तो नहीं रह गया! कल धनतेरस है। उसके लिए भी सोचना है! तभी फलों के दो-तीन ठेले दिखाई दिए, इससे पहले कि उनसे दूर चले जाएँ, मनु ने शीघ्र कहा, “अजी सुनो बहुत अच्छे फल दिखे। घर में कुछ ही फल बचे हैं। प्लीज़ स्कूटर रोक लीजिए।” 

मोहित ने टालने के लिए कहा, “मीठा-नमकीन भी तो रहेगा! समय भी बहुत हो गया है।”

मनु ने कहा, “देखिए मिलने-जुलने वाले आते रहेंगे। ठीक है, मीठा-नमकीन बन रहा है पर आजकल लोग डायट और हैल्थ कोंश्यस हैं। फल ही प्रैफ़र करते हैं। उस समय आप ही को फल लाने दौड़ना पड़ेगा‌। अच्छा है आज ही ख़रीद लें।”

मोहन ने अनमने होकर स्कूटर रोका। सड़क पार कर मनु ठेलों के पास पहुँची। संतरे, मौसंबी, अनार ख़रीदने के बाद सेब की बारी आई। मनु ने पूछा, “कैसे दिए सेब?”

जवाब आया, “बोर्ड पर लिखा है पढ़ लीजिए।”

मनु ने पढ़ा, “सौ के तीन‌। सौ के चार।”

उसने पूछा, “भैया क्या अंतर है दोनों में?”

“तीन वाली लाल सेबों की ढेरी कश्मीरी है। चार वाली शिमले की।”

मनु ने व्यंग्य कसा, “भैया ये तो नस्ली भेदभाव हो गया। साथ ही राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रहार है। राज्यों में दूरी करना ठीक नहीं।”

“ठीक है; तो फिर आप शिमले वाले सेब भी सौ में तीन से ले लीजिए।” 

दाम बिगड़ते देख मनु ने कश्मीरी सेब उठाए। ‌उन पर सफ़ेद सा पाउडर लगा देख पूछ ही लिया, “भैया! सेबों पर आप लोग पाउडर क्यों लगाते हो?”

जवाब था, “मैडम जी जैसे घर के बाहर जाते समय आप लोग पाउडर लगाते हैं वैसे ही रंगत ख़राब होने से बचाने के लिए हम सेबों को पाउडर लगाते हैं।”

जवाब सुनकर मनु ने हँसी रोकते हुए कहा, “ऐसा है घर जाने के बाद इनका पाउडर धुल जाएगा इसीलिए मैं इन्हें आप ही के पास छोड़े जा रही हूँ,” यह कह मनु सड़क पार कर गई। 

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