पिता

मणि बेन द्विवेदी (अंक: 208, जुलाई प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

पिता ही अपने बच्चों की ख़ुशियों का संसार होता
माँ के आँचल का संबल हैं पिता से ही परिवार होता। 
पिता ही हैं बट वृक्ष सरीखे बच्चों को देते हैं छाॅंव। 
आँच ताप न आने देते पिता हैं इक फूलों का गाॅंव॥
 
पिता ही ऐसी हस्ती होते बच्चों के सपनों की जान। 
पिता है ऐसा पावन रिश्ता जिनसे बच्चों की पहचान। 
दुख हो या फिर घड़ी ख़ुशी की पिता ही साथ खड़े होते
पिता की छत्र छाया में बच्चे पलते और बड़े होते। 
 
ख़ुद पैदल पैदल चलते हैं बच्चों को काॅंधा देते। 
ज़िद करते जिस चीज़ ख़ातिर, पिता वो पूरी करते। 
सारे प्यार दुलार पिता बच्चों को अर्पित करते हैं। 
बच्चों के लालन पालन में सर्व समर्पित कर देते। 
 
आज खड़ा बट वृक्ष वही हालत पर अपने रोता है। 
जिसे सींच कर किया बड़ा वो सुध ना पिता की लेता है 
दुखी नहीं होना है अब दस्तूर यही दुनिया का हुआ। 
जिसने सर्वस्व निछावर किया उसका ही आज कोई ना हुआ॥

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