नरकंकाल

अनुराग (अंक: 225, मार्च द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सूखी है काया पिचके हैं गाल, 
ऐसा है हमारा हाल। 
शरीर पे नहीं है मांस, 
सिर्फ़ हड्डियाँ हैं हमारे पास। 
 
चालीस किलो है भार, 
चारपाई मानती है हलके आदमी का आभार। 
कुछ लोग पूछते हैं क्या तुम खाते हो खाना, 
कुछ कहते डॉक्टर को दिखाओ ना करो कोई बहाना। 
 
जो भी कोई मिलता दे जाता अनेक सलाह, 
तीर जैसी चुभती है हर एक सलाह। 
अब मैं असली बात बताता हूँ, 
आम आदमी से ज़्यादा मैं खाता हूँ। 
 
मीठा है मनपसंद, 
मज़े से खाता हूँ जो भी आये पसंद। 
वज़न है हड़ताल पे बैठा, नहीं पड़ता उसे कोई फ़र्क़, 
उसके चक्कर में हो गया है हमारा बेड़ा गर्क। 
 
ऐसा है हमारा हाल, 
हम हैं खाते-पीते नरकंकाल। 

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