अतिथि

अनुराग (अंक: 222, फरवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

महीने की थी अन्तिम तिथि, 
घर में आए अतिथि, 
अतिथि ने किया प्रणाम, 
रसोई में चायपत्ती बोल रही थी— 
चल भई जय श्री राम! 
अतिथि की पत्नी का नाम था अलका, 
सिलिंडर हो गया था हल्का, 
अतिथि का सूटकेस था बड़ा, 
आटे का कनस्तर ख़ाली था पड़ा, 
हमने मन में ईश्वर को आवाज़ लगायी, 
हे भगवान क्या विकट परिस्थिति है आयी, 
अब क्या करें गोसाईं? 
तभी हुआ एक चमत्कार, 
सिलिंडर का बढ़ गया भार, 
रसोई के सारे ख़ाली डिब्बे गए लबालब भर, 
हमारा मन भी हर्ष उल्लास से गया भर। 
हमने माना ईश्वर का उपकार, 
इतनी जल्दी सुनी पुकार। 
तभी आयी एक कर्कश आवाज़, 
कब तक सोगे आलसी-राज? 
अद्भुत था स्वप्न हमारा, 
उठकर देखा तो बज गए थे दिने के बारहा! 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें