नैतिकता और भूख

01-01-2023

नैतिकता और भूख

अनुराग (अंक: 220, जनवरी प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

काव्य रस में डूबे थे एक कवि, 
पत्नी बोली चल उठ राशन लेके आ अभी, 
छोड़ो क़लम उठाओ झोला, 
दुकान पे होगा रामू का भाई भोला। 
बोलना अबकी बार दे दे उधार, 
अगले महीने कर देंगे उद्धार, 
आते हुए धनिया लेते आना, 
पैदल ही आना और पैसे बचाना। 
 
कवि बोले हमारी हिंदी है शुद्ध, 
उधार माँगना है हमारी नैतिकता के विरुद्ध। 
 
पत्नी बोली करो मुझे माफ़, 
आटा हो गया है साफ़, 
नैतिकता का डालो अचार, 
कैसे बनेगा खाना करो तनिक विचार। 
 
कवि बोले सही कहती हो तुम, 
भूख के आगे नैतिकता हो जाती है गुम। 

1 टिप्पणियाँ

  • 30 Dec, 2022 07:51 PM

    मज़ा आ गया सरजी । नैतिकता का अचार डालना ही आज तर्कसंगत है और आवश्यक भी । वरना जीवन की रेल पटरी से उतर जाएगी । पाप पुण्य बाद की बातें हैं । कभी जन्म लिया तो चुकता हो जाएगा । बहुत ख़ूब और मज़ेदार । शुभकामनाएँ

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