मेरे जीवन की सुखद यात्रा—पंखों से पहाड़ों तक 

15-12-2025

मेरे जीवन की सुखद यात्रा—पंखों से पहाड़ों तक 

अनीता रेलन ‘प्रकृति’ (अंक: 290, दिसंबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

§ बचपन—उड़ान का पहला गीत
 
बचपन से ही मन में साध थी एक अनकही चाह—
काश मैं भी पक्षी होती, 
खुले, नीरव, विशाल गगन में
जहाँ चाहती उड़ती, जहाँ चाहती जाती। 
 
मन गुनगुनाता—
“पंख होते तो उड़ जाती रे . . . ” 
और दिल में आकाश का नक़्शा बन जाता था। 
 
???? स्कूल—सेवा, अनुशासन और राष्ट्रभावना
 
फिर स्कूल की चौखट आई—
किताबों की महक, अध्यापकों का स्नेह, 
और जीवन को दिशा देने वाली सीखें। 
 
NCC की चाल ने हिम्मत दी, 
NSS की सेवा ने आत्मा को आकार दिया। 
 
वहीं जाना—
“जीवन सिर्फ़ अपनी कहानी नहीं, 
राष्ट्र का अध्याय भी है।” 
 
§ देशभक्ति की गूँज—कोलकाता से पोर्ट ब्लेयर
 
एक यात्रा ऐसी भी . . . 
जिसने रग-रग में देश का ताप भर दिया। 
 
पोर्ट ब्लेयर, 
तीर्थ जैसा पवित्र, 
सेलुलर जेल की दीवारों पर
बलिदानों के निशान अब भी ज़िन्दा थे। 

दामोदर सर के स्वर आज भी गूँजते हैं—
 
“तैयार हैं हम बात की मार खाने के लिए, 
तैयार हैं हम बैल बन-कोल्हू चलाने के लिए; 
जब तक नहीं होगा स्वाधीन भारत—
स्वर्ग में सुख नहीं। 
तैयार हैं हम यातनाएँ सहने को, 
पर होंठों पर रहेगा—
मेरा प्यारा भारतवर्ष . . . और वंदे मातरम।” 
 
वो वीर—
जो हँसते-हँसते फाँसी के तख़्ते पर चढ़ जाते थे . . . 
उन्हें याद कर आज भी आत्मा झुक जाती है। 
 
§ प्रकृति के रोमांच—पहाड़ों की गूँज
 
यात्राएँ केवल घूमने का साधन नहीं, 
ये मन को नया आयाम देती हैं। 
 
कसौली की सुबह—
देवदारों की छाया में बैठकर
ओस की बूँदों को पत्तों पर चमकते देखना . . . 
वो शान्ति मन में उतरती चली गई। 
 
शिखर पर खड़े होकर
दिनकर की लाली, 
संध्या की मंदता, 
चिड़ियों की बोली—
सब एक कविता बन गए। 
 
§ जीवन का संघर्ष—परिश्रम से सफलताओं तक
 
कॉलेज से नौकरी, 
और फिर उद्यमिता की राह—
हर क़दम ने मुझे नया आकार दिया। 
 
वूमेन एंटरप्रेन्योर बनने का साहस, 
फिर सामाजिक सेवा की तपस्या, 
और आज—
उद्यमिता विकास अधिकारी के रूप में
निःशुल्क मार्गदर्शन देने का सौभाग्य। 
सरकारी योजनाओं को
जन-जन तक पहुँचाना—
मेरे सफ़र का नया उजाला है। 
 
§ यात्राओं के बीच मिला जीवन-ज्ञान
 
रास्तों ने बहुत कुछ सिखाया—
 
“ललाट पर पसीने की बूँदें
भविष्य का स्वर्ण लिखती हैं।” 
 
“ज्ञान तभी पूरा होता है
जब किसी और का मार्ग रोशन करे।” 
 
“दुनिया चले ना राम के बिना, 
राम जी चले ना हनुमान के बिना।” 
 
हर यात्रा—मन की परत खोलती गई। 
 
§ अबू धाबी—अंतर की उदासी का आकाश
  
अबू धाबी की एक उड़ान . . . 
थोड़ी भावुक थी। 
 
आकाश को देखकर मन ने पूछा—
“शून्य का रंग नीला क्यों लगता है? 
और उदासी का रंग कैसा होता है?” 

यात्राएँ ऐसी ही होती हैं—
कभी हँसी, कभी मौन, 
कभी उत्साह, कभी चिंता
 
§ जीवन का सार—मिलने-बिछड़ने की राहें
 
जब यात्रा अंत के क़रीब आई, 
तब महसूस हुआ—
जीवन भी एक यात्रा है। 
 
लोग मिलते हैं, 
लोग बिछड़ जाते हैं—
और अपनी-अपनी यादों की मोहर देकर
दिल के किसी कोने में बस जाते हैं
 
(ऐसी ही एक यात्रा थी जब मैं अपने बेटे के पास कैनेडा गई तो वहाँ मुझे मेरी बहुत पुरानी फ़्रेंड 40 साल पुरानी फ़्रेंड मिली और उनके साथ कॉलेज की बातों को साझा करना फिर आगे की ज़िन्दगी के पन्नों को खोलना चंचलता चुलबुलाहट है

आज भी हमारे दिल में ताज़ा है जो मैंने एक दिन बिताया वह मेरे ज़िन्दगी का बहुत सुनहरा दिन था और अविस्मरणीय था)

 

“ज़िंदगी का सफ़र यूँ ही चलता रहा, 
कभी धूप मिली, कभी साया रहा; 
जो रुका वो पीछे रह गया, 
जो चला—वही इतिहास बन गया।” 
 
“मैं गिरकर भी उठी हर मोड़ पर, 
हौसलों ने हमेशा राह बनाई; 
मेरी हर यात्रा ने सिखाया—
मंज़िलों से कहीं ज़्यादा
मज़ा सफ़र में आता है।” 
 
“कुछ रास्ते रोमांच दे जाते हैं, 
कुछ दिल को छू जाते हैं; 
कुछ यात्राएँ बेशक ख़त्म हो जाएँ, 
पर मन में हमेशा बस जाते है 
 
मैं आज भी यात्रा पर हूँ—
बचपन की उड़ान से
आज की सेवा और उद्यमिता की राह तक। 
 
सफ़र मेरी पहचान है, और पहचान मेरी मंज़िल

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