कान्हा का आगमन
विकास बिश्नोई
गाँव के एक कोने में रामलाल और उसकी पत्नी सीता का छोटा-सा घर था। दोनों बेहद साधारण जीवन जीते थे, परन्तु उनकी दिनचर्या में भक्ति और सेवा का बड़ा महत्त्व था। रामलाल और सीता दोनों भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और हर जीव-जंतु में भगवान का वास समझते थे। उनकी दिनचर्या में कभी कोई जल्दबाज़ी नहीं थी। वे अपने समय को भगवान के नाम, पशु पक्षियों की सेवा और अपने छोटे से घर में शान्ति से बिताते थे।
एक सुबह, जब सीता आँगन में झाड़ू लगा रही थी, उसने देखा कि उनके घर के बाहर एक सफ़ेद गाय खड़ी है। गाय पूरी तरह से सफ़ेद थी, उसकी आँखें गहरी और शांत थीं, और उसकी चमकती हुई त्वचा जैसे किसी दिव्य प्रकाश की झलक देती हो। सीता ने उसे ग़ौर से देखा। गाय वहाँ चुपचाप खड़ी सीता को देखती रही।
सीता ने सोचा कि यह भूखी होगी। उसने रसोई से रोटी और गुड़ लाकर गाय को दिया। गाय ने रोटी खाई और फिर सीता को देखते हुए अपना सिर झुका लिया, जैसे आभार व्यक्त किया और वहाँ से चली गई।
इसके बाद, वह गाय हर दिन आने लगी। सुबह, दोपहर और शाम—दिन में तीन बार। जब तक रामलाल या सीता उसे रोटी न देते, वह वहीं घर के दरवाज़े पर खड़ी रहती। यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा। सीता और रामलाल उसे प्यार से “कान्हा” कह पुकारने लगे। गाँव के अन्य लोगों ने भी ग़ौर किया कि वह गाय केवल रामलाल के घर ही आती थी। लोग चर्चा करने लगे, “यह गाय कितनी अजीब है। वह तो बस उसी घर पर आती है!”
एक शाम, जब रामलाल घर पर नहीं था, और सीता अकेली रसोई में काम कर रही थी, वह गाय आँगन में आकर खड़ी हो गई। सीता ने सोचा कि रोज़ की तरह उसे रोटी देनी होगी। लेकिन जब उसने रोटी लेकर गाय की ओर क़दम बढ़ाए, तो गाय ने अचानक ज़ोर से डकार मारी। सीता चौंक गई। उसने देखा कि गाय की आँखें किसी अजीब से तेज से चमक रही थीं।
सीता घबराई और पीछे हट गई, लेकिन गाय अपनी जगह पर स्थिर खड़ी रही। तभी अचानक आँगन में तेज़ हवा चलने लगी और गाय ने अपने खुरों से ज़मीन को खोदना शुरू कर दिया। सीता डर गई और तुरंत पीछे हट गई।
गाय ने जहाँ-जहाँ खुर मारे थे, वहाँ कुछ ज़मीन फटने लगी, और एक रहस्यमयी आभा निकलने लगी। सीता पूरी तरह हैरान रह गई। उसने धीरे-धीरे ज़मीन के नीचे झाँककर देखा तो वहाँ एक चमचमाता हुआ तांबे का घड़ा नज़र आया। सीता ने तुरंत रामलाल को बुलाया और दोनों ने घड़ा निकाला। घड़ा सोने और चाँदी के गहनों और सिक्कों से भरा हुआ था।
दोनों की आँखों में आँसू थे, और वह भगवान कृष्ण की कृपा से अभिभूत हो गए। वे समझ गए कि यह धन केवल भौतिक नहीं है, बल्कि यह भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद है। दोनों गाय को प्रणाम करने लगे। गाय ने भी एक-एक कर दोनों को देखा और वहाँ से चल दी। दोनों ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की, लेकिन वह गाय नहीं रुकी और थोड़ी दूर जा कहीं खो गई। दोनों ने उसे ख़ूब ढूँढ़ा पर वह कहीं नहीं मिली।
गाँव वालों को जब इस घटना का पता चला, तो सबने इसे भगवान कृष्ण की लीला माना, जो उनकी भक्ति और सेवा का फल देने आई थी।
रामलाल और सीता ने दिल से भगवान कृष्ण का आभार व्यक्त किया और अपनी भक्ति में और भी गहरी श्रद्धा से लीन हो गए।