जड़ 

विकास बिश्नोई (अंक: 213, सितम्बर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“ये हर रोज़ की किच-किच मैं आज जड़ से ही ख़त्म कर देता हूँ। ये ना माँ-बाप घर में रहेंगे, ना कोई क्लेश होगा,” रमेश ने अपनी पत्नी सुनीता से कहा। 

दो-चार दिन निकलते ही रमेश ने दोनों का सामान समेटा और माँ-बाप को घर से निकाल दिया। बूढ़े माँ-बाप बेटे से घर में रहने की दुहाई देते हुए कह रहे थे, “बेटा, इस उम्र में हम कहाँ जायेंगे? हमें घर से मत निकाल, हम आगे से तुम्हें और बिटिया सुनीता को कुछ नहीं कहेंगे।” पर रमेश ने दोनों की एक नहीं सुनी और उन्हें घर से निकाल दिया। 

ये सब उनका 6 साल का बेटा उत्कर्ष देख रहा था और दादा-दादी के साथ रहने के लिए बस रोए जा रहा था। सुनीता ने उसे थप्पड़ लगाया और हाथ पकड़ अंदर ले गई। 

थोड़े दिन गुज़रे ही थे कि रमेश की बाइक का किसी गाड़ी से टकराने की वजह से एक्सीडेंट हो गया। सड़क से कुछ लोगों ने नज़दीकी अस्पताल में भर्ती कराया और फोन से नंबर ढूँढ़कर उसके पिता और पत्नी को फोन कर दिया। माता-पिता, पत्नी और उसका बेटा तुरंत अस्पताल पहुँच गए। पत्नी सुनीता बेटे को लिए एक तरफ़ खड़ी थी, तो माता-पिता दूसरी तरफ़। वहाँ आने पर पता लगा कि रमेश के एक हाथ में फ़्रैक्चर हो गया और काफ़ी ख़ून बह गया है। सभी बेहद चिंतित हो गए थे। 

पिता के हाथ में फ़्रैक्चर देख बेटे उत्कर्ष ने अपनी माँ से पूछा, “ये क्या हुआ है पापा के हाथ में और ये पट्टी क्यों बाँधी है?” 

माँ ने बेटे को रोते हुए बताया, “आपके पापा के हाथ में चोट लगी है। इसलिए ये पट्टी बाँधी हुई है।” 

“फिर पापा को दर्द भी बहुत हो रहा होगा ना माँ,” उत्कर्ष ने पूछा। 

“हाँ बेटा,” माँ ने धीमी आवाज़ में कहा। 

“माँ फिर पापा का एक पूरा हाथ काट के अलग ही कर दो ना, दर्द जड़ से ख़त्म हो जाएगा ना, जैसे दादा-दादी को घर से निकालकर लड़ाई को जड़ से ख़त्म कर दिया था। “

उत्कर्ष की बात सुन कमरे में अब सन्नाटा पसर गया था। 

इतने में डॉक्टर ने नर्स को भेजकर परिवार को संदेश पहुँचाया कि रमेश को ख़ून की सख़्त ज़रूरत है और अस्पताल में इस वक़्त ख़ून उपलब्ध नहीं है। 

सुनकर जहाँ सुनीता ओर ज़ोर से रोने लगी, वहीं रमेश के पिता को याद आया कि उनका और रमेश का ब्लड ग्रुप एक ही है। उन्होंने तुरंत ख़ून देने की बात कही। 

डॉक्टर ने रमेश के पिता को देख कहा, “आप पुनः एक बार सोच लीजिए, इस उम्र में आपका ख़ून देना आपके लिए भी सही नहीं है।” 

रमेश के माँ-बाप दोनों ने डॉक्टर को हाथ जोड़ कहा, “साहब, हमारे बेटे से ज़्यादा ज़रूरी नहीं है हमारी जान की क़ीमत। आप जल्दी ख़ून ले लीजिए, बस हमारे बच्चे को बचा लीजिए।” काग़ज़ी कार्यवाही पूरी करवाने के बाद पिता के ख़ून देने से रमेश की जान अब बच चुकी थी। 

रमेश और सुनीता अपने किए पर शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे। दोनों ने माता-पिता के सामने रोते हुए हाथ जोड़ उनसे माफ़ी माँगी। पिता ने बेटे और माँ ने सुनीता को गले लगा लिया। 

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