हिन्दी कविता
डॉ. राजेन्द्र वर्माकबीर ने लिखी भक्ति
भक्ति को जिया
राम को कहा पिया
सूर ने कहा कान्हा
मुझे तार देना
तर गया।
तुलसी ने कहा– परिस्थिति विषम
घबराओ नहीं
यह समय भी टल जाएगा
शत्रु प्रबल, राजा–
राजधर्म-च्युत
राम ही कोई रास्ता दिखाएगा
पहले अपने को सँभालो
जीवन-आदर्श की राम-कथा गा लो
संस्कृति लिखी, संस्कार लिखा
भरत-देश नहीं संसार लिखा
जीवन का पारावार लिखा।
रीति की कविता परिमित
दरबार-शृंगार तक सीमित
जो होना था सो हो गया
काग-कुटिल
सिंहासनारूढ़ हो गया
तीन शताब्दी का अंतराल
अतीत धुँधला पथ विकराल
भारतेन्दु-मंडल पर दायित्व बड़ा
राजभक्ति-देशभक्ति-शिक्षा-समाजोद्धार
उत्साह अपार
गुप्त-प्रसाद की नाप-जोख
पहुँची वहाँ-
जहाँ सूर्य आलोक
इतिहास-संस्कृति पर गहरी चोट
हम कौन थे कहाँ आ गए
सूर्य-कुल का सूर्य धूमिल
ये बादल कहाँ से आ गए
प्रसाद, निराला, महादेवी, पन्त
गहन-गीत-प्रकृति-अनंत
शक्ति-संचय संस्कृति-संधान
आत्मावलोकन भविष्य-विधान
सुरंग की मँझधार में
अँधेरा अपार होता है
भाव कुछ आंदोलित कुछ स्वच्छंद बहा
यथार्थ नहीं वायवीय कहा
और भी कवि अनेक श्रेष्ठ
स्वराज्य के सपने बुनते रहे प्रत्येक
बनाते रहे सेतु
नहीं अपने हेतु
तुम्हें भी उस पार जाना था
सेतु वह तुम्हें न दिया दिखाई
इधर राजनीतिक उथल-पुथल बढ़ी
उधर प्रगति-प्रयोग की चिंता खड़ी
मुक्तिबोध ने खोजे अँधेरे-खोह
देखा रक्तालोक-स्नात पुरुष
प्रयास समझ में आया
धूमिल की आग- मानव राग
हृदय खोल वह भाव-दोल
कवि-पथ नहीं भ्रमण–भोर
जिजीविषा अपार समझाया
कविता में साम्य-काम्य
कविता में खोजूँ वाद- क्यों?
प्रगति-प्रयोग-छाया-वाद क्यों?
कविता से अकविता तक
मुझे यह विपर्यय स्वीकार क्यों?
नहीं संवाद केवल प्रतिवाद
तुम्हारी कविता में खोजूँ समाज
बस तुम्हें न खोजूँ
यह कैसा प्रवाद !
सूर्य-चाँद, पूरा भ्रमांड, तेरी मेरी कृति नहीं
समाज व्यक्ति से बना
इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं
गर तुम कवि, तुम कवि श्रेष्ठ
तुम्हारे कर्तव्य की इति नहीं
किन्तु
हताशा-निराशा-संत्रास तुम्हारे मन के
मुझसे क्या अभिप्राय
तुम्हारी कुंठा को
कोई गले की कंठी क्यों बनाए?
वह धूमिल की आग गुम है खोजो
शब्दों की मार बेलाग गुम है खोजो
मुक्तिबोध का रक्तालोक-स्नात पुरुष
तुम ही हो कवि खोजो
धर्म बिना अर्थ अनर्थ
विकार नहीं स्वीकार- लिख
धर्म-कर्तव्य-कर्म- लिख
अतीत ग़लत तो शर्म- लिख
धर्म नहीं मानव-धर्म- लिख
कवि स्वयम्भू-सृजनहार- लिख
कवि पोषणहार- लिख
कविता संहार-विकराल- लिख
राम का आदर्श- लिख
कृष्ण-कर्म-विमर्श- लिख
गीता का मर्म- लिख
राजनीति नहीं राजधर्म- लिख
मधुकोष-
निचोड़-पी-अघा- लिख
विष-
उत्साह-पी-पचा- लिख
तू जैसा है वैसा दिख
जितना तेरा सत्य उतना लिख।
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