गणेश वंदना
डॉ. अनुराधा प्रियदर्शिनी
विध्न विनाशक मंगल कारक, कोटि नमन हे गणेशा।
वरद हस्त मेरे प्रभु रखना, कोई न हो अंदेशा॥
प्रथम पूज्य देवों में गणपति, भक्त करते जयकारा।
शुभ फलदायक गौरी के सुत, हृदय विराजो हमेशा॥
भाद्रपद की चतुर्थी तिथि शुभ, कर मूषक की सवारी।
रिद्धि-सिद्धि के गणपति स्वामी, आए बीच संसारी॥
पूजन को घर द्वार सजाया, मन मंदिर बिठाऊँ देवा।
बुद्धि विवेक का तु वर देना, ज्ञान से हो उजियारी॥
कलि ने ऐसा जाल बुना है, जिससे घिरी मानवता।
औरों के दुःख में सुख खोजे, छिपा रहा दुर्बलता॥
एक दन्त विध्नेश गणेशा, दूर करो अँधियारा।
आओ धरा की पीड़ा हर लो, दूर करो ये विषमता॥