धुआँ
बसन्त राघव
हमें नहीं चाहिए ऐसी ऊँचाइयाँ
जहाँ साँसों में ज़हर घुला हो
विकास का हिमालय व्यर्थ है
जो तेज़ाबी बर्फ़ से ढका हो
हमें नहीं चाहिए ऐसा वरदान
जो अनीति के पलड़े में तुला हो
हमें नहीं चाहिए फ़ायदे का बाज़ार
जिसके पीछे शोषण का व्यापार हो