ढोंग
बसन्त राघव
तुम्हारे पैरों के घाव से
बहता हुआ मवाद देखकर
पेड़ के नीचे
इकट्ठा हुई भीड़ में तुम्हें अकेले छोड़
मैं आगे बढ़ गया . . .!
मुझे इस बात का दुःख नहीं कि
फाड़कर
अपनी साफ़ सुथरी सफ़ेद चादर
तुम्हारे कोढ़ ग्रस्त पाँव में बाँधा नहीं
बल्कि दुख इस बात का है कि
मैं उस भीड़ में
फ़रिश्ता क्यों न बन सका!