दीपक माटी का
गोवर्धन यादवतुम हो सोने की वाटिका
तो मैं हूँ नन्हा दीपक माटी का
तुम प्रभात के साथ मिल
अलख जगाने आयी हो
जिसके रव में कोई
कवि रोता है या हँसता है
मेरा अस्ताचल का साथ
मानो भारी निद्रा लाया है
जिसका कण कण भी
आँखों में आंजे सोता है
दुनियां भी कितनी बौराई है
या फिर कोई पागलपन है
कोई कहता मिट्टी सोना हो गया
कोई कहता सोना मिट्टी हो गया
यदि ये अन्तर एकाकी हो जाये
तो दुनियां निर्विकार हो जाये