चाँदनी की उधारी

03-05-2012

चाँदनी की उधारी

डॉ. रति सक्सेना

 

उन सभी क़दमों को
गिन कर देखूँ यदि
तुम्हारे साथ चले थे मैंने
पाँव फिर से
चलना भूल जाएँ
सड़क भूल जाए रास्ता
 
उन लम्हों को जोड़ कर देखूँ
बिताएँ थे तुम्हारे साथ
समय की धड़कन रुक जाए
 
उस आँच को
क्या पहचानोगे तुम
जिसमें पकता रहा
मेरा अन्तस्‌-रस
तुम्हारा हर क़दम, 
 
हर साथ
हर बूँद प्यार
चाँदनी की उधारी था

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें