अपनों ने
आशुतोष शर्माअपनों ने कै|सा ढाया क़हर है
रिश्तों में घोल डाला ज़हर है।
बन गए मज़हब के हाकिम सभी
जाने कैसी चल पड़ी लहर है।
झूठ का है दौर खुल कर बोलिए
सच्चाई कि अब नहीं ख़ैर है।
कहाँ तक चलोगे लेके उसूलों को
देखिए तो हर तरफ़ अँधेर है।
ख़ूब करो लूट, क़त्ल और ग़ारत
काफ़ी बड़ा अपना भी शहर है।
चीखें पुकारें बेबसी की गूँज रही
नए वक़्त की यह नई बहर है।