अँधेरा होते ही
पूनम कुमारी
अँधेरा होते ही
यह दुनिया
हो जाती है क़ैद
अपने-अपने घरों में
तब
निकलते हैं
काले-काले चमगादड़
अपने-अपने घरों से
इस
अंधकारभरी दुनिया का
मुआयना करने को
रहती है सीमित
उनकी भाषा
उन्हीं तक
जैसे सीमित रहती है
धूप
दोपहर तक