इस किराये के मकान में
पूनम कुमारी
मकान का दरवाज़ा खोलते ही
अजीब सी गंध चारों ओर फैल गई
यह गंध शायद पिछले किरायेदार की थी
उसने भी इसी खिड़की से देखे होंगे
कितने आते जाते बसंत
इन दीवारों पर
उसने भी शायद लगाए होंगे पोस्टर
इसी मकान में वह
कभी ख़ुश, तो कभी दुःखी रहा होगा
इसी मकान में बैठे-बैठे उसने लिखी होगी
अपनों को कुछ चिट्ठियाँ
इस मकान से जाते समय
घेरी होगी उसको
कुछ प्यारी
कुछ दिल को नोचती यादें
कैसी अनुभूति है यह
इस किराये के मकान में