जल

अशोक रंगा (अंक: 197, जनवरी द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

प्रिय मित्र जल! 

तुम कितने निर्मल व परोपकारी हो। 

हाँ! हमने देखा है तुम्हे बादलों के रूप में चलते व दौड़ते हुए व रिमझिम-रिमझिम बरसते हुए। पेड़ पत्तों से टकराकर टप-टप-टप-टप धरती पर बरसते हुए व जीवन में उल्लास भरते हुए। 

पहाड़ों से निकल कर नदियों के रूप में कल-कल-कल-कल बहते हुए। अलसुबह ओस के रूप में हर जगह मौजूद रहते हुए। पाताल-तोड़ कुओं में अपने भीतर एक गहराई लिए हुए। 

यार जल! मटकी में शीतलता लिए हुए तुम कितने प्यारे लगते हो। मिट्टी के सकोरे में बेले के सरबत संग मिलकर स्वाद व प्यारी सी महक़ लिए हुए तुम्हारा कोई मुक़ाबला ही नहीं। 

धरती पर सम्पूर्ण जीव जंतुओं की प्यास को बुझाते वाले जल तुझे दोस्त कहूँ या देव? गर्मियों में जब एक शीतल जल गले के नीचे उतरता है तब तेरी अहमियत का अहसास होता है। उस वक़्त ऐसा लगता है कि जैसे कि यही स्वर्ग है। 

हाँ यह भी सच है कि तुम्हारे बिना किसी का शरीर नहीं बन सकता, फ़सलें नहीं हो सकती, धरती पर नवनिर्माण नहीं हो सकता फिर भी क़दम क़दम पर तेरी ही उपेक्षा देख़ता हूँ तो दिल में दर्द होता है यार। 

हाँ, कभी-कभी तुम भी इंसानों से कुछ नाराज़ होकर जल प्रलय की झलकियाँ दिखलाते हो पर आदमी हर बार, बार-बार ग़लतियों को दोहराता रहता है। 

वह भी दिन थे जब गाँव में कुँए से घड़ों में पानी भर कर लाया करते थे। हाँ उस वक़्त सबको पानी की क़ीमत का अहसास था। नहाने व कपड़े धोने के बाद उसी पानी को नाली में बहने से रोक कर घर की सफ़ाई के काम में लिया करते थे। अब घर बैठे पानी जो मिल जाता है ना? 

मगर अब दुःख होता है, तेरे साथ बहुत सारे गुनाह होते हुए देख कर जैसे कि फ़ैक्ट्रियों के ज़हरीले पदार्थों को, शहरों के सीवरेज को बहती नदियों में गिरते हुए देख कर। कई लीटर शुद्ध जल को बाथटब में भरकर महज़ नहाने के बाद नालियों में बहाते हुए देखकर . . . क्या एक-दो बाल्टी पर्याप्त नहीं नहाने के लिए? शौच के बाद डब्लू.सी. में पाँच–दस लीटर पानी बहाते है। क्या इस काम के लिए जल की बचत करने का कोई दूसरा उपाय तलाश नहीं किया जा सकता? पता नहीं पाँच-दस लीटर के हिसाब से पूरी दुनिया में कितना पानी डब्लू.सी. में बह जाता है। 

गली-मोहल्लों में कई देर तक पानी के टूटे हुए नल से निरर्थक बहते पानी को लेकर देखकर सच में दिल में दर्द होता है। 

एक तरफ़ तुम तो सबके लिए जीवनदायक हो वहीं दूसरे तुम्हारा दुरुपयोग करते आ रहे हैं। सच में इन बातों से दिल में दर्द होता है। 

बस यह सब स्वीकार करते हुए तुझे ख़त लिखकर मन को कुछ हल्का करने की नाकाम कोशिश कर रहा हूँ दोस्त कि जल ही जीवन है। जल है तो कल है। जल का दुरुपयोग नहीं बल्कि जल की बचत हो, फिर भी ऐसा नहीं हो रहा है।

सद्भावना के साथ। 

हम हैं तुम्हारे गुनहगार इंसान। 

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