फूल पत्थर में खिला देता है
यूँ भी वो अपना पता देता है
हक़ बयानी की सज़ा देता है
मेरा क़द और बढ़ा देता है
बुझने देता नहिं सच्चाई की आग
कौन दामन से हवा देता है
अपने रस्ते से भटक जाता हूँ
तू मुझे जब भी भुला देता है
मुझमें पा लेने का जज़्बा है अगर
क्यों ये सोचूँ कोई क्या देता है
उसने बख़्शी है बड़ाई जब से
वो मुझे ग़म भी बड़ा देता है