दफ़ना दूँ
किसी
पत्थर के
नीचे
गहरे -
भावनाओं को
न निकल सकें
बाहर।
अँधेर बहुत है...
शामिल हो
जाऊँ
भीड़ में,
भावनाओं के
खेल में।
बंद कमरे
चुस्कियों के
बीच बहस
मुद्दे...
किसान...
राम... मंदिर...
धर्म संसद...
आरक्षण.....
युवा....।
एका एक
गहरी दबी
भावनाओं के
बीच
प्रकट हुई
हनुमान जी की
पूँछ...
जाति कुंडली
के
लिए
भटक रही।