कैसे हो?
धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’ज़िन्दगी की भाग दौड़ में
कब वक़्त मिला, कब नहीं
किसी से दो शब्द भी न कह सके
कैसे हो?
तपते रहे, जलते रहे उम्र भर
पर चलते रहे जैसे भी
ज़िन्दगी का सफ़र कटाते हुए
रोते हुए, गाते हुए
मुस्कुराना ज़िन्दगी है
पता है लेकिन...फिर भी
ऐसे वक़्त में भी
न किसी से कह सके
कैसे हो?
मिलते रहे कितने लोग
बिछुड़ते रहे कितने अपने
संगी थे जो कितने अपने
सपने जो थे सच्चे अपने
मिलकर भी जैसे भूलते गये
तेज़ी से वक़्त काटते गये
कभी मिले भी राहों में
तो न कह सके
कैसे हो?
1 टिप्पणियाँ
-
very interesting lines