गौरैया
धीरज श्रीवास्तव ’धीरज’छोटी गौरेया आती है,
दाना चुग उड़ जाती है।
मेरे छत और आँगन में,
कितना शोर मचाती है।
रंग-बिरंगी, प्यारी-प्यारी,
छोटी-छोटी, कितनी सारी।
जब भी उसे पास बुलाऊँ,
फुर से वो उड़ जाती है।
कभी मिलती छत पर मेरी,
कभी दिखती डालों पर।
देखती है नन्ही आँखों से,
आती है, उड़ जाती है।
कितना दौड़ूँ उसके पीछे,
इधर-उधर वो जाती है।
जब भी पकड़ना चाहूँ मैं,
कितना शोर मचााती है।