भीड़ चीखती है

15-09-2019

(1)

लहूलुहान है वो
चलो, उसे बचायें
दर्द उसके चेहरे पर है
एक गुनाह की तरह।

 

वो बेकसूर है या
हालात के हाथों जकड़ा हुआ
एक बेबस बाशिन्दा।
 
लोगों को कौन बताए
कि वो तो खड़ा था
एक भीड़ को देखते हुए
लोगों को बेवज़ह चिल्लाते 
आपस में लड़ते हुए।

 

वो क्यों देख रहा था
उसे खुद पता नहीं था
वो तो बस देख रहा था
लोगों को लड़ते हुए
एक-दूसरे पर चिल्लाते हुए।

 

अचानक भीड़ के
भागने से
वो डर गया था
भीड़ के साथ
वो भी भागा था
और पकड़ा गया था
तब तक एक पत्थर
उसके माथे पर आ लगा था। 

 

वो चीख रहा था
चिल्ला रहा था
ख़ुद को बेगुनाह 
कह रहा था
लोगों के भीड़ में 
पर उसकी आवाज़
उस भीड़ में 
गुम होती जा रही थी
वो सिसक रहा था
रो रहा था।

 

इंसान और इंसानियत
टूट रहे थे
इंसान रो रहा था
एक इंसान 
खुली सड़क पर
घसीटा जा रहा था
एक इंसान के हाथों
इंसानियत नंगी हो रही थी।

वो तो सिर्फ़ खड़ा था
भीड़ को देखने के लिए।

 

(2)

मत देखो भीड़ को
बस गुज़र जाओ 
चुपके से
न जाओ
किसी को बचाने
न सुनो 
किसी की दर्द भरी आवाज़
न कहो 
उससे सहानुभूति के शब्द
क्योंकि अब लोग बचाने नहीं जाते
जाते हैं 
सिर्फ़ एक फोटो लेने
ताकि कल वो अपने
व्हाट्स अप पर
फ़ेसबुक पर
इन्स्टाग्राम पर
उसे पोस्ट कर सकें
और कह सकें
कि कल मैं वहीं था
उसके बेहद क़रीब।
 

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