यहाँ पीपल की छाँव है
संजीव बख्शीयह रास्ता
जो तेजी से बढ़ रहा है
मंजिल चाहे जो हो
जैसा भी
ठहरिए
आप यहीं करिए इंतज़ार
वापस आएगा यह
इसी रास्ते
रास्ते के ऊपर
दौड़ रहा है
रास्ता
बेतहाशा
हाँफ रहा है
दौड़ते- दौड़ते
यह मंजिल पर भी ठहरेगा
मुझे नहीं लगता
मंजिल पेड़ पर फली है
रास्ता आएगा पेड़ के नीचे
पेड़ नहीं जाता कहीं चल कर
न मंजिल
मौसम आएगा इसी रास्ते
खुशियाँ इसी रास्ते
ठहरिए यहीं करिए इंतिजार
पीपल की छाँव है यहाँ।