वीरों की विजय का विजय दिवस

01-02-2022

वीरों की विजय का विजय दिवस

तनु प्रिया चौधरी (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

रक्त, भक्त और वक़्त की कहानी
एक दास्तान हो गई आज पचास वर्ष पुरानी
 
एक दास्तान जो सालों पुरानी है
किसी ने सुनी तो
किसी ने अब तक ना जानी है
 
वो गुरुवार का दिन था
जब देशभक्ति में हर भक्त लीन था
 
बात ज़रा ज़्यादा पुरानी है
पर सुनना ध्यान लगा के
ये वीरों की कहानी है
 
उस दिन की वो हवा
भी तूफ़ानी थी
एक बार फिर
धर्म के विजय का 
एहसास दिलाने वाली थी
 
कई वीरों ने अमर फिर अपना 
नाम किया था
मिट्टी के कण-कण में अपना
एहसास दिया था
 
विजय दिवस के उल्लास में
छिपा जो ग़म का मेघ है
आज वह मेघ बरसाना है
वीरों की विजय का 
विजय दिवस मनाना है
 
ढाका की उस भूमि पर तेरह दिन का
तप किया था
हमारे वीर जवानों ने
वीरत्व का प्रण लिया था
 
उन वीर लहू के क़तरे-क़तरे से
सबको रुबरू करवाना है
वीरों की विजय का 
विजय दिवस मनाना है
 
कहानी इतनी सी नहीं
ये तो बस संक्षेप था
देखो मुड़ कर बन्दे तुम
उनके रक्त में क्या वेग था
 
धधक-धधक कर आग जली थी
जब माँ के सीने में
तब हर लाल ने शस्त्र उठाया
क्योंकि नहीं सुख
डर कर जीवन जीने में
 
आज उस निडर की निडरता
को शब्दों में बताना है 
वीरों की विजय का 
विजय दिवस मनाना है
 
यूँ चीते सी छाती ले
अश्व वेग से दौड़ गए
दुश्मन की धरती पर जा कर
क्षण भर में उनके
प्राण और होश सब हरे
 
शत्रु की क्यों बात करें
आज तो वीरों का दिन है
नहीं सोचते किसने क्या किया
आज तो वक़्त, हवा, फ़िज़ा और घटा
सब वीरत्व में लीन है
 
आज वीरों की वीरता का सकल 
चित्र सबको दिखाना है
वीरों की विजय का  
विजय दिवस मनाना है। 

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