सफ़ोकेशन

01-08-2022

सफ़ोकेशन

सुमित दहिया (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

आजकल कई चेहरों में कविता ढूँढ़ते वक़्त
मैं अटक रहा हूँ
भावों से अव्यवस्थित होकर
विचारों को सहला रहा हूँ
भावनाओं को ठग रहा हूँ
फिर भी नहीं उतर रही कविता
यहाँ तक कि ख़ाली कमरे में
हिलता हुआ भारीपन और बहता हुआ अंतराल भी
नहीं कर पा रहा कोई ठोस मदद
बार-बार केवल एक ही शब्द पर 
केंद्रित हो रहा है पूरा ज़ेहन
सफ़ोकेशन, सफ़ोकेशन

क्या अर्थ है इसका
एक साफ़ सुथरी सड़क के चौराहे पर खड़ा इंतज़ार
मिंटों, घंटों और वर्षों में बनती आकृतियाँ
एक साँवला कंधा
बोझ और दूषित आवाज़ों से दबा हुआ
बेचैन, ओझल 
 
हाँ यूँ कुछ इन हालातों में जन्मता है प्रेम
और फिर वह प्रेम बढ़ता है
न जाने कब, कैसे और क्यूँ
रोग, पीड़ा, द्वेष, कुंठा, घृणा
और अंततः सफ़ोकेशन की तरफ़
इतना दमघोंटू, ज़हरीला और विषाक्त हो जाता है
जहाँ काम न आये
पहाड़, वादियाँ, हज़ारों किताबे, ज़िम्मेदारियाँ
और कोई ताज़ा खिली मुस्कान

फिर इस बाँझ शब्द (सफ़ोकेशन) से परिचित होने के बाद
कभी न ऊपजे
ज़मीन से इलाज
हवा से मरहम
पानी से तरलता 
भाव से कविता 
ख़्वाहिश से ख़्वाहिश
और प्रेम से प्रेम॥

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