एक पुरानी कविता 

01-08-2022

एक पुरानी कविता 

सुमित दहिया (अंक: 210, अगस्त प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

वो नया शहर, नए दोस्त देखना चाहती थी
उसके जीवन का मक़सद बन गया था
एक पुराने चेहरे की विदाई
अपने रहने के कमरे में 
जब उसकी नज़र तलाश रही थी कुछ नया
तो उसने देखा
एक पुरानी फ़ोटो, चंद प्रेम कविताएँ
चाय का पुराना कप, चॉकलेट, एक बिखरा हुआ हीटर
और अन्य पुरानी चीज़ों को
  
फिर एक दिन वह 
सड़क का नया व्याकरण सूँघने निकल पड़ी अचानक
तो उसे उन्हीं परिचित रास्तों पर 
पड़े मिले अनगिनत पुराने दृश्य
पुराने शहर के चौराहे अटे पड़े थे
उस पुराने चेहरे की मौजूदगी से
अपने कार्य करने के स्थान पर भी
नहीं तलाश पाई वह कुछ नया
वहाँ भी वही पुराना आदमी उपस्थित था
अपनी सभी यादों, वादों और तोहफ़ों के साथ 
 
हाँ वही पुराना आदमी जिसने दिखाए थे 
उसे अनेकों नए अनमोल पल
नए दिन, नए शहर, नई चीज़ें
और नई आवाज़ें
उस पुराने आदमी ने पुकारा था उसे कभी
बर्फ़ के बीचों-बीच से चीखकर
घाटियों की गहराइयों से बिलखकर
और बारिश की झमाझम से चहककर
 
उस पुराने आदमी ने पुकारा था उसे कभी
अनेकों नए नामों से
वह बुन रहा था नया भविष्य
उस मोतियाबिंद ग्रस्त कंकाल के साथ
जिसकी पास की दृष्टि थी बेहद कमज़ोर 
वह कभी नहीं देख पाई अपनी असल भावनाएँ
कान भी छोटे थे
जो कभी सुन नहीं पाए उसके अपने ही दिल की धड़कन
जीभ लंबी थी जिससे चाट गई वह पुराना रिश्ता
  
मगर अंततः हुआ ये
कि वो सरकारी औरत आजीवन नहीं ढूँढ़ पाई कुछ भी नया
न अपने शरीर के अंदर और न बाहर
वह पुराना आदमी उपस्थित ही रहा
उसके पूरे अस्तित्व पर अपनी विशाल मोजूदगी के साथ॥

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