मैं पर केंद्रित 

15-02-2024

मैं पर केंद्रित 

सुमित दहिया (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

मैं उन परिस्थितियों का अंतराल हूँ
जिसमें ज़ख़्मों के पर्यायवाची के रूप में 
समय बोता है दुख
मेरे शरीर का पानी टूटने पर बनता है 
मोहब्बत या आँसू
 
मैं उस समय की ख़ुराक हूँ
जिसमें मेरे आसपास मौजूद चेहरों के मानचित्र
हमेशा मुझे लगते हैं संदिग्ध
 
मैं उन आँखों की भाप हूँ
जिनमें अकस्मात्‌ ही ऊपजती है तरलता
चंद दूसरी आवाज़ों की गतिविधियों से छनकर 
दस्तक देती है नई घटनाएँ
 
मैं उस ज़बान का बयान हूँ 
जो कहती है वादा करो, करोगे इंसाफ़
उन सब बाक़ी ज़बानों से बहाए गए ज़हर का
 
मैं उस हृदय का लहू हूँ 
जिसके शरीर से निकला लहू फैला है
बहुत दूर तक
उसने ढक दिया है तीन पीढ़ियों का संघर्ष 
कई वर्ष उसके वेग से हो गए है लकवाग्रस्त
और बूढ़ी हड्डियों को वो लहू गलाता है
निरंतर दिन-रात॥

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